बैतूल:- वर्षों से जंगल की जमीन पर जीवन बिता रहे आदिवासी परिवार अब सरकारी सिस्टम की ढिलाई और पंचायत की अनदेखी के शिकार हो रहे हैं। वन अधिकार मान्यता कानून के तहत ऑनलाइन दावा फाइलें तैयार हो चुकी हैं, लेकिन ग्राम पंचायत स्तर पर उन्हें जमा तक नहीं किया जा रहा है।
1. विकासखंड भीमपुर की ग्राम पंचायत पिपरिया (गुरुवा) के काबिज़ परिवार जब अपनी फाइलें लेकर पंचायत सचिव और रोजगार सहायक के पास पहुंचे, तो दो टूक जवाब मिला, हमें विभागीय आदेश नहीं मिला है, इसलिए हम फाइल नहीं ले सकते। इसी व्यवहार से नाराज ग्रामीणों ने अब कलेक्टर के नाम जिला पंचायत में ज्ञापन सौंपकर कहा है कि यदि हमारी फाइलें समय पर जमा नहीं की गईं, तो हम आंदोलन का रास्ता अपनाएंगे।

- सचिव और रोजगार सहायक पर लगाए आरोप:-
ग्रामीणों ने बताया कि उन्होंने वन अधिकार मान्यता कानून अधिनियम 13 दिसंबर 2005-06 के तहत ऑनलाइन दावा फाइलें पंजीकृत कराई हैं, लेकिन ग्राम पंचायत सचिव और रोजगार सहायक द्वारा जानबूझकर फाइलें जमा नहीं की जा रही हैं। ज्ञापन में उल्लेख किया गया है कि जब ग्रामीण अपनी फाइलें लेकर पंचायत सचिव के पास पहुंचे, तो उन्हें स्पष्ट कहा गया कि विभाग से कोई लिखित आदेश नहीं आया है, इसलिए फाइलें नहीं ली जाएंगी। ग्रामीणों ने इस रवैए पर कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि यह संवैधानिक अधिकारों का हनन है, उन परिवारों के साथ सीधा अन्याय है जो वर्षों से जंगल में काबिज़ हैं और जिनका अस्तित्व उसी भूमि से जुड़ा हुआ है। - फाइलें तत्काल उपखंड स्तरीय समिति को सौंपें जाने की मांग:-
ग्रामीणों का कहना है कि उनके पास पटवारी द्वारा तैयार किए गए नक्शे हैं जो 13 दिसंबर 2005-06 के पूर्व के काबिज़ होने का प्रमाण हैं, जिन्हें दावा फाइल में संलग्न किया गया है। यह उनके वैध हक का साक्ष्य है जिसे नकारा नहीं जा सकता। उन्होंने मांग की कि या तो पंचायत सचिव को आदेशित किया जाए कि वे फाइलें तत्काल उपखंड स्तरीय समिति को सौंपें, या फिर जिला स्तर पर सीधे फाइलें जमा कराई जाएं ताकि जांच प्रक्रिया शीघ्र शुरू हो सके। ज्ञापन देने वालों में प्रभू, नानी बाई, शंकर, मेघराज, चैतराम, संतुलाल, कोमल, आशाराम, साबूबाल, सुखराम, रतिराम, नंदू, रामकरण, भोजराज, मंगल, झब्बू, बालजी, भागरती, जीजी बाई, कपली बाई, भुरई बाई, नानी बाई, मेघराज, बिरम, लच्छीराम, रामा, आसाराम सहित दर्जनों ग्रामीण शामिल रहे। ग्रामीणों ने चेताया है कि यदि फाइलें जमा कर वन अधिकार की प्रक्रिया शीघ्र शुरू नहीं की गई, तो वे आंदोलन का रास्ता अपनाने पर मजबूर होंगे।